TRP की दौड़ में लगातार गिरता जा रहा पत्रकारिता का स्तर
जब भी हम पत्रकारिता की बात
करते हैं तो हमारे सामने एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभर कर आती है. जो समाज मे घट रही
घटनाओं से हमे रूबरू कराता है साथ ही जनता की समस्याओं को प्रशासन के समक्ष रखता
है. या यूं कहे कि वो आम जनता की अवाज बनता है उनका प्रतिनिधित्व करता है. जब सविधान
का निर्माण किया गया तो देश को बेहतर तरीके से चलाने के लिए विधानपालिका,
कार्यपालिका और न्यानपालिका की व्यवस्था की गई. इन तीनो विभागों को इनके कार्यों व
जिम्मेदारियों का एहसास करवाने के लिए पत्रकारिता का जन्म हुआ। पत्रकारिता यानि कि
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ।
पत्रकारिता का एक दौर ऐसा
भी था। जब पत्रकारो के द्वारा लिखी गई एक खबर, लेख ब्रिटिश शासन की नीव हिला देती
थी. देश के अजादी दिलाने में पत्रकारिता ने अहम भूमिका निभाई थी. जब देश आजादी के लिए जद्दोजहद कर रहा था तो हमारे
स्वतंत्रता सेनानियो ने लोगों तक अपनी बातों को पहचाने, लोगों को एकजुट करने और
ब्रिटिश शासन की नीव को उखाड़ने लिए देश के अलग – अलग हिस्सों से समाचार पत्रों व
पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ. समाचार, पत्र-पत्रिकाओं के जरिए अपनी विचारो
को लोगों तक पहुचाने व लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोडने में सफलता मिली. परंतु
आज स्थिती पूरी तरह से बदल गई है. आज पत्रकारिता धंधा बन गई हैं।
देश में पत्रकारों को
विशिष्ठ शक्तियां दी गई ताकि जरूरत पड़ने पर उच्च पदो पर बैंठे व्यक्ति, नेता व
प्रशासन के खिलाफ अपनी अवाज को उठा सके. लेकिन पत्रकारों द्वारा इन शक्तियों का
गलत इस्तेमाल किया जा रहा हैं. आज बहुत कम ऐसे पत्रकार व मीडिया संस्थान हैं जो लोक
कल्याण, समाजिक हित से जुड़े मुद्दे पर बात करते हो या इस तरह की खबरें प्रशारित
करते है.
इस समय हम किसी भी नेशनल
न्यूज़ चैनल को देखे तो 24 घंटे खबरों के नाम पर केवल मसाला परोसा जा रहा। सनसनीखेज
खबरें, बेंक्रिग न्यूज़, डिबेट शॉ, की भरमार है. दिन रात ऐसी खबरे दिखाई जा रही है
जिनका न्यूज़ फैक्टर से कोई लेना – देना नही है. चैनलो में कराए जा रहे डिबेट शॉ
मे कोई भी आम लोगों से जुड़े मुद्दे पर बात नही करता केवल हिन्दुस्तान- पाकिस्तान,
हिन्दू- मुस्लिम, जाति पर बहस होती है और ये बहस कभी-कभी गाली- गलौज, मारपीट तक भी
पहुचं जाती है. और सबसे बड़ी बात है दर्शक बिना किसी शिकायत के ऐसी खबरो को चटकारे
लेकर देख रहा है. यही कारण हैं चैंनल बिना किसी परहेज के ऐसी खबरें चलाते है. हाल
के कुछ दिनों की ही बात करे तो मीडिया संस्थानों ने टीआरपी के लिए सारी हदे पार कर
दी है.
बॉलिवुड एक्टर सुशांत सिंह
राजपूत आत्महत्या केस आपको याद ही होगा. जब सभी मीडिया चैनल आत्महत्या का हत्या
साबित करने में जुट गए थे. अन्य सभी खबरों को नजरअंदाज करके लगातार कई हफ्तों तक
सुशांत सिंह केस को दिखाया गया. इस खबर को दिखाने के लिए चैनल के रिपोर्टर ने सारी मर्यादाएं लांघ दी. कुछ ऐसा ही हाल हाथरस गैंगरेप केस में भी देखने मिला
जहां बडे चैनल के रिपोर्टस ने केवल एकतरफा खबर ही जनता के सामने रखा। ये जानने के
बाद भी कि पीडिता और आरोपी एक ही गांव में
रहते हैं किसी भी रिपोर्टर ने आरोपियों के परिजनों से बात करने की जहमत नही उठाई जबकि
पूरा गांव ये कह रहा था कि चारों लड़के बेकसूर है. इतना सब कुछ महज TRP (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट ) के लिए किया जाता है. TRP के लिए ही चैनल इस तरह की
खबरों को अधिक महत्व देते है. जो कही न कही मीडिया द्वारा अपनी शक्तियों का गलत
इस्तेमाल करना और दर्शकों को गुमराह करना ही है.
हम इस बात को भी समझते हैं
कि टीआरपी किसी भी चैनल के लिए आवश्यक है क्योंकि इसी के जरिए चैनल को विज्ञापन और
स्पांसर मिलते हैं. जो चैनल और पत्रकारों के आय का साधन है, लेकिन TRP के लिए इस तरह की घटिया स्तर की पत्रकारिता
करना कैसे सही हो सकता है? जनता से जुड़े मुद्दो, सत्यापूर्ण खबरों, व सरकार से सवाल
करके भी लोकप्रियता/टीआरपी हासिल की जा सकती है.
ऐसा नही है कि सभी चैनल व
पत्रकार इस तरह घटिया पत्रकारिता करते है. अभी भी कुछ ऐसे पत्रकार, चैनल है जो
पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ अपना कार्य कर रहे हैं। ऐसा करने की आवश्यकता भी
हैं क्योकि कही न कही लोगों का मीडिया पर से भरोसा उठता जा रहा है जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. इसलिए समय रहते पत्रकारो को अपने दायित्व को समझना होगा और
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की गरिमा बनाए रखने
के लिए लोकहित और लोक कल्याण से जुड़े मुद्दो के लिए कार्य करना होगा जो
पत्रकारिता का वास्तविक स्वरूप है।
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